
“पब्लिक टॉकीज” संवाददाता
कोंडागांव। जिला मुख्यालय में बीते 15 दिनों से हरे–भरे पेड़ों का कत्लेआम बेरोकटोक जारी रहा, मानो पूरा शहर ही लकड़ी माफिया के हवाले कर दिया गया हो। दिन के उजाले में, चाय की चुस्कियों और नेताओं के भाषणों के बीच, पेड़ धराशायी होते रहे और ट्रैक्टरों में भर-भरकर रवाना होते रहे—मिलों और बाजारों की ओर, लेकिन फॉरेस्ट विभाग? वो तो जैसे योग-निद्रा में लीन था।
न विभाग जागा, न प्रशासन बोला – हर ओर था “हराभरा” सन्नाटा!
जिस ज़िले में फॉरेस्ट चेक पोस्ट NH-30 पर दोनों ओर बनाए गए हैं, वहां से पेड़ों की लाशें निकलती रहीं, पर चेक पोस्ट के जवान या तो लकड़ी की महक से मोहित थे या जिम्मेदारी से अनजान। ज़ाहिर है, चेक पोस्ट ‘फॉरेस्ट संरक्षण’ के लिए नहीं, ‘फॉर्मेलिटी कलेक्शन’ के लिए बनाए गए हैं!
“कटाई का आदेश है”… कौन सा, किसका, कब का – इसका जवाब नदारद!
जब कांग्रेसियों को खबर लगी कि संयुक्त कलेक्टर चित्रकांत चार्ली ठाकुर के घर के सामने भी पेड़ कट रहे हैं, वे पहुंचे मौके पर। वहां उन्हें काटे गए 6 पेड़ मिले, और अधिकारी मिले ‘स्लीप मोड’ में। SDM साहब ने बताया कि ‘आम जनता को नुकसान पहुंचा रहे पेड़ों को चिन्हांकित कर काटा जा रहा है।’ लेकिन फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर बी रामाराव कुछ और ही राग अलापते मिले—“कटाई का आदेश तो मिला, लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं हुआ।” अब ये पेड़ भूत काट रहे थे या नगरपालिका वाले गुप्त आदेश से, ये भी रहस्य है।
जांच हुई, पर जवाब फिर वही गोलमोल
रामाराव साहब जब मौके पर पहुंचे, तो पेड़ तो कटे मिले लेकिन किसी के पास ‘आदेश’ नहीं मिला। नतीजा – आरा मशीन, रस्सा, ट्रैक्टर, और काटी गई लकड़ियां जब्त। फिर वही रटी-रटाई स्क्रिप्ट – “हमें लगा नगरपालिका खुद काट रही होगी इसलिए हमने कुछ नहीं किया।” यानी एक अनुमान पर पूरा विभाग 15 दिन तक आंख मूंदे बैठा रहा।
“पेड़ कटते रहे, विभाग सोता रहा – यह है नया फॉरेस्ट मॉडल!”
अब सवाल ये उठता है कि—
15 दिन तक पेड़ों की बेशर्मी से कटाई होती रही और किसी ने भी जांचने की ज़रूरत नहीं समझी?
चेक पोस्टों से लकड़ी निकलती रही और वन विभाग को हवा तक नहीं लगी?
रेंज ऑफिसर, डिप्टी रेंजर और बिट गार्ड क्या जंगल में ध्यान साधना कर रहे थे?
“चोरी भी, तस्करी भी, और मूकदर्शक भी – सब एक ही सिस्टम में!”
कोंडागांव में अगर यह पेड़ों की सबसे बड़ी चोरी नहीं, तो फिर क्या है? मंत्री केदार कश्यप के ही राजस्व क्षेत्र में यह कारनामा हुआ और वे भी मौन रहे। तो सवाल उठता है – मंत्री, प्रशासन और वन विभाग में से जिम्मेदार कौन है?
या फिर हम मान लें कि यह सब ‘प्राकृतिक विकास’ का हिस्सा है—जहां पेड़ काटे जाते हैं, और जिम्मेदार अधिकारी पत्ते तक नहीं हिलाते।
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